मांगलिक जन्मपत्रिकाएं और मंगलदोष का परिहार

मांगलिक जन्मपत्रिकाएं और मंगलदोष का परिहार

Jan 01, 2023

मंगल प्रभावी मांगलिक जन्मपत्रिकाएं तीन प्रकार की होती है-

1. मांगलिक जन्मपत्रिका

जब मंगल जन्मपत्रिका के 1- 4- 7- 8- 12 भाव में से किसी भी भाव में होता है तो जन्मपत्रिका मांगलिक कहलाती है।

 2. द्विबल मांगलिक जन्मपत्रिका

जब मंगल 1- 4- 7- 8- 12 भाव में होने के साथ-साथ नीच (कर्क राशि) का भी हो तो मंगल दुष्प्रभाव दोगुना हो जाता है अथवा 1- 4- 7- 8- 12 भावों में मंगल के अलावा सूर्य, शनि, राहू-केतु में से कोई ग्रह बैठा हो तो जन्मपत्रिका द्विबल मांगलिक होती है।

3. त्रिबल मांगलिक जन्मपत्रिका

(कर्क राशि)- का मंगल यदि 1- 4- 7- 8- 12 भाव में हो तथा शनि,राहू, केतु भी उक्त भाव में हो तो मंगल का दुष्प्रभाव तीन गुना हो जाता है। ऐसी जन्मपत्रिका त्रिबल मांगलिक कहलाती है।

मंगलदोष का परिहार

जातक की जन्मपत्रिका मांगलिक होने पर माता-पिता चिंतित हो जाते हैं, क्योंकि ज्योतिषशास्त्र के अल्पज्ञ ज्योतिषियों ने अनेक प्रकार की भ्रांतियां फैला रखी हैं, किंतु इनमें से अधिकांश जन्मपत्रिकाएं ऐसी होती हैं जिसमें मंगल दोष का परिहार सहजरूपेन हो जाता है जैसे-

1.  यदि पुरुष की जन्मपत्रिका मांगलिक हो तथा स्त्री की जन्मपत्रिका के 1- 4- 7- 8- 12 भाव में सूर्य, शनि, राहू हो तो जन्मपत्रिका मंगल दोष से मुक्त हो जाती है।

2.  जिस भाव में मंगल बैठा हो उस भाव का स्वामी ज्योतिष की दृष्टि से बलवान हो तथा उसी भाव में बैठा हो या उस भाव में उसकी दृष्टि पड़ रही हो, पुन: सप्तमेष या शुक्र के तीसरे भाव में बैठा हो तो मंगल दोष नहीं माना        जाएगा।

3.  मेष का मंगल लग्न में, वृश्चिक का चतुर्थ भाव में, वृष का सप्तम भाव में, कुंभ का अष्टम भाव में तथा धनु का द्वादश भाव में हो तो मंगल दोष नहीं माना जाता।

           अजे लग्रे व्यये चापे पाताले वृश्चिके स्थिते।

           वृषे जाये घटे रन्ध्रे भौमदोषो न विद्यते।।

4.  उच्च का गुरु लग्र में स्थित हो तो मांगलिक दोष नहीं माना जाता। ऐसे जातक का विवाह अमांगलिक जातक से किया जा सकता है।

5.  यदि शनि 1- 4- 7- 8- 12 भाव में किसी एक जातक की जन्मपत्रिका में हो तथा दूसरे जातक की जन्मपत्रिका में इन्हीं स्थानों में से किसी एक स्थान में मंगल हो तो मंगलदोष परिहार हो जता है। विवाह शुभ माना जाता                 है।

6.  यदि केंद्र 1- 4- 7- 8- 10 तथा त्रिकोण (5-9) भाव में शुभ ग्रह हों तथा 3- 6- 11 भावों में अशुभ ग्रह हों एवं 7 वें भाव में सप्तमेश हो तो मंगलदोष नहीं रहता।

7.  सातवें भाव में मंगल हो तथा गुरु की उस पर दृष्टि हो तो मांगलिकदोष नष्ट हो जाता है।

8.   गुरु और मंगल की युति हो अथवा मंगल और चन्द्र की युति हो या फिर चन्द्रमा केद्र स्थानों (1- 4- 7- 10) में स्थित हो तो मांगलिक दोष नहीं रहता।

9.   1- 4- 7- 8- 12 भाव में मंगल यदि चर राशि (मेष, कर्क, मकर) का हो तो मांगलिक दोष नहीं होता।

10.  एक जन्मपत्रिका में जैसा मंगल तथा सूर्य और सूर्य, शनि, राहू-केतु आदि पापग्रह दूसरी जन्मपत्रिका में भी हो तो मंगलदोष नहीं रहता। विवाह शुभ रहता है।

सूर्य व गुरुदोषविचार एवं परिहार

अशुभ स्थानों पर सूर्य एवं गुरु की स्थिति भी दोषपूर्ण मानी गई है। ऐसी स्थिति आने पर ज्योतिषी प्राय: इन ग्रहों से संबंधित दान आदि करने का विधान बताया करते हैं तथापि इस समस्या के समाधान स्वरूप परिहाररूप में अधोलिखित बात ध्यान देने योग्य हैं-

द्वादश वर्ष से अधिक की कन्या एवं षोउश वर्ष (सोलह वर्ष)-से अधिक का वर हो तो ज्योतिष के विद्वान सूर्य एवं गुरु का विचार नहीं करते।

अत: किसी सुविज्ञ ज्योतिष से जन्मपत्रिका के दोष-गुणों का निराकरण कराकर संशयनिवृत्त होकर विवाह कार्य संपन्न कराना चाहिए।

कल्याण से साभार—गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित